बहुतायत धन-वैभव, बहु
संख्यक शिष्य-अनुयायी आश्रम भवन अटालिकांए और व्यापक प्रचार-प्रसार न तो कभी तत्त्वज्ञान
और पूर्णावतारी का पहचान रहा है और न तो वर्तमान में ही हो सकता है । भगवदावतार की
एकमात्र पहचान परम सत्यता-सर्वोच्चता सम्पूर्णता वाला तत्त्वज्ञान ही रहा है और आज
भी है ।
आप
समस्त वर्ग-सम्प्रदाय-पन्थ-ग्रन्थ के समस्त गुरुजन-सद्गुरुजन व तथाकथित भगवानों और
अनुयायी-शिष्यगण से मुझ सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस का स्पष्टत:
आग्रह है कि आप अपने लौकिक मान-सम्मान एवं भौतिक विस्तार-फैलाव से ऊपर उठकर
वैचारिक, आध्यात्मिक और तात्त्विक स्तर पर अपने ऊँचाइयों और
उपलब्धियों का आकलन करें । महात्मा-धर्मात्मा एवं भगवदावतारी की दृष्टि स्थूल अथवा
भौतिक मात्र ही नहीं होनी चाहिए जैसे कि ''हमारे अनुयायीजनों
की संख्या बहुत अधिक है अथवा हमारी संस्था बहुत बड़े विस्तार को प्राप्त हो चुकी है
अथवा बहुत बडे सम्मान-प्रतिष्ठा को प्राप्त हो चुकी है, इसलिये
हम 'सत्य' हैं''--यह कोई 'सत्य' की आकलन-पध्दति
नहीं है । 'सत्य' तो सदा-सर्वदा एक ही
रहा है, एक ही है और एक ही रहेगा भी ।
हम सभी को अपने मूलभूत
सिध्दान्तों को देखना चाहिए और सद्ग्रन्थीय प्रमाणिकता के आधार पर अपने ऊँचाई,
महत्ता एवं उपलब्धियों का आकलन करना चाहिए, क्योंकि
शरीर व संस्था का तथा इनका भौतिक विस्तार और लौकिक मान-सम्मान की उपलब्धि कभी भी 'धर्म' की कोई मौलिक मान्यता नहीं रही है । ये सब
धर्म की कभी भी कसौटी नहीं रही है । धर्म की वास्तविक कसौटी अथवा 'सत्य' की वास्तविक पध्दति जीव-रूह-सेल्फ एवं
आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म-नूर-सोल-स्पिरिट- ज्योतिर्मय शिव और परमात्मा-परमेश्वर
-परमब्रह्म-खुदा-गॉड-भगवान् (अहं-ॐ के पितामह और सोऽहँ का पिता रूप परमतत्त्वम्)
-- तीनों का ही क्रमश: स्वाध्याय (Self Realization) एवं योग-अध्यात्म (Spritualization)
और तत्त्वज्ञान रूप सत्य ज्ञान (True Supreme And Perfect KNOWLEDGE) के आधार पर
ही होना चाहिये जिसमें तीनों ही पृथक्-पृथक् बात-चीत सहित स्पष्टत: दिखलाई दे कि 'हम' जीव-रूह- सेल्फ है कि 'हम'
आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म-नूर-सोल-स्पिरिट-ज्योतिर्मय शिव है या कि 'हम' परमात्मा-परमेश्वर -परमब्रह्म-खुदा-गॉड-भगवान्
है ? यानी इन तीनों में से वास्तव में असल 'हम' कौन है ? ऐसे 'ज्ञान-तत्त्वज्ञान' वाला ही वास्तव में सत्य होगा और
उपर्युक्त सर्म्पूण की प्राप्ति ही वास्तव में 'सत्य'
की वास्तविक आकलन पध्दति है । पूरे भू-मण्डल पर ही क्या कोई भी और
क्या, जो इन तीनों को ही बात-चीत सहित पृथक्- पृथक् साक्षात्
दर्शन करवा दे ? कोई भी नहीं ! कोई भी नहीं !! कोई भी
नहीं !!!