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ऐ जीव भटक क्यों जाते हो, क्यों भगवद् शरण नहीं आते हो ।
जब भगवद् शरण नहीं आओगे, यमदूत से पकडे ज़ाओगे ॥
यमदूत पकड़ ले जायेगा, तब बार-बार पछताओगे ।
जो भगवद् शरण में आता है, वह मुक्ति-अमरता पाता है ॥
जो भगवद् शरण नहीं आयेगा, वह लख-चौरासी भटका खायेगा ।
जो कोई कहता भगवान नहीं हैं, निश्चित जानो शैतान वही है ।
पहली शिक्षा, स्वाध्याय है दूसरा, तीसरा में योग-अध्यात्म है ।
तत्त्वज्ञान को चौथा जानो, जिससे मिलता परमात्मा है । ।
संसार और शरीर को ही मात्र, शिक्षा बतला सकती है ।
जीव-रूह-सेल्फ को मात्र, सूक्ष्म-दृष्टि दिखला सकती है ॥
आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म-ज्योति को, भइया अध्यात्म से जानो ।
परमात्मा-परमेश्वर-परमतत्त्वम् को 'तत्त्वज्ञान' से पहचानो ।
जीव-ईश्वर-और परमेश्वर को, पृथक्-पृथक् जानो देखो ॥
अहं-स: ज्योति व आत्मतत्त्वम् को सन्त ज्ञानेश्वर से पाओ-परखों ।
कर्म-अध्यात्म 'तत्त्वज्ञान' नहीं, -सोऽहँ भगवान नहीं ।
तत्त्वज्ञान ही भगवद्ज्ञान है, केवल परमतत्त्व ही भगवान है ॥
योगी-यति और साधु-महात्मा, -सोऽहँ-ज्योति बतलाते हैं ॥
भोले-भाले जिज्ञासु-भक्तों को, झूठे ये सभी फँसाते हैं ॥
भगवद् शरण में आ जाओ, और तत्त्वज्ञान को पा जाओ ।
तत्त्वज्ञान को पाकर  के तुम, जीवन को सफल बना जाओ॥
योग-साधना ही 'ज्ञान' नहीं, अध्यात्मज्ञान भी 'तत्त्वज्ञान' नहीं ।
शरीर-जीव-ईश्वर-परमेश्वर, यथार्थत: ये चार हैं,
इन चारों को दिखलाने हेतु, भगवान् लेते अवतार हैं ॥
सत्ययुग में श्री विष्णु रूप में, 'तत्त्व' ही लिये अवतार रहा।
त्रेता में उसी 'आत्मतत्त्वम्' का श्री राम के साथ प्रचार रहा
द्वापर में भी उसी परमतत्त्व का, श्री कृष्ण रूप में तत्त्वज्ञान कहा ॥
उसी तत्त्व को श्री सदानन्द ने वर्तमान में 'तत्त्वज्ञान' कहा ॥
ले लो भैया 'तत्त्वज्ञान' जीवन तुम्हारा सफल होगा ।
लख-चौरासी से बच जाओगे, जीवन  तुम्हारा अमर होगा ॥

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पुरुषोत्तम धाम आश्रम
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