ज्ञान-क्रान्ति


योगियों और तान्त्रिकों, विद्वानों और वैज्ञानिकों
सावधान !          सावधान !!         सावधान !!!


सोऽहँ और ॐ वालों, चमत्कार और अधिकार वालों, सोऽहँ वाले भगवानों और ॐ मात्र के ही मान्यता वालों, चमत्कार वाले भगवानों और साधना वाले सिध्दों, धन वाले धनवानों और विद्या वाले विद्वानों, आप जो हो, जिस जाति, वर्ग या सम्प्रदाय के हों, आओ हम सब एक मंच पर उतरें ।


''अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग'' अब नहीं चलेगा ।
धन-बल, जन-बल, योग-बल अब अइहें ना कौनो काम ।
पद-बल और चमत्कार-बल अब सब होइहें नाकाम ॥
, सोऽहँ और चमत्कार, सबका पिता तत्त्वज्ञान ।
ऐ बनने वाले भगवानों, तू मत कर अब अभिमान ॥
सबका पिता परमप्रभु जी हरदम रहते हैं परमधाम ।
वह प्रभु अब भू-मण्डल पर, बनाया जगह-जगह पर धाम ॥
जब-जब बढ.ता पाप पृथ्वी पर मनुज शरीर धरि आते हैं ।
फँसे प्राणियों को परमप्रभु तत्त्वज्ञान की राह दिखाते हैं ॥
कहते हैं वे परमप्रभु, जब भू-मण्डल पर आता हूँ ।
देकर ज्ञान फँसे प्राणी को, भक्ति-सेवा करवाता हूँ ॥
परम ज्ञान और वैराग्य प्रदान कर सबका मोह भगाता हूँ ।
जनम-मरण और पाप बन्धन से मुक्त-अमर बनाता हूँ ॥
देकर ज्ञान काट बन्धन को, परमधाम पहुँचाता हूँ ।
फँसे प्राणियों मत घबराओ, पहले करो शंका-समाधान ।
विष्णु-राम-कृष्ण सा इसको मत ठुकराओ ऐ भाग्यवान ॥
पहले वेद, पुराण, गीता से, करा लो आप सूब पहचान ।
ऐ आत्मा वालों परमात्मा को, तुझे जनाने आया हूँ ॥
तत्त्वज्ञान का लेकर झण्डा, सबके समक्ष फहराया ।
मत भटको ऐ फँसे प्राणियों, तेरे लिए तो आया हूँ ।
कर मेरा पहचान ज्ञान से, अभिमान को खाने आया हूँ ॥
देहाभिमान, जीवाभिमान या, चाहे हो आत्माभिमान ।
सबको खाने तो आया हूँ, जैसे चाहो कर लो पहचान ॥
ऐ मेरे प्राणियों पछताओगे, यदि मेरे पास न आओगे ।
भटका देंगे ये योगी-यती, भटकायेंगे ये चमत्कारी ॥
यदि शरण न लिया तू मेरा तो, खा जायेंगे ये अहंकारी ।
इसलिए कहता हूँ शोर मचा, ऐ मेरे प्राणी भटक न जा ॥
तु निर्भय हो आओ बन्दे, पहचान प्रभु को कट जाय फन्दे ।
बाल योगी, सतपाल यहाँ रजनीश जैसा शैतान जहाँ ॥
ब्रह्मचारी और सदाचारी, सत साँई जैसा अभिमान जहाँ ।
भूतनाथ, अवधूतनाथ, श्रीराम शर्मा जैसा ढोंगी योगी ॥
करपात्री, शंकराचार्य, कोई कृपाचार्य कोई द्रोणाचार्य ।
जयगुरुदेव आदि आचार्य सभी बनने वाले पाखण्डी हैं ॥
ऐ सोऽहँ वालों ऐ ॐकारी, ब्रह्मचारी हो या सदाचारी ।
अब मत कर तू अभिमान यहाँ ॥
आओ हम सब उतरें एक साथ, हो जाय फैसला साफ-साफ ।
क्यों बन्दों को भटकातें हो, क्यों मेरे समक्ष नहिं आते हो ॥
खुलेगी कलई अब तेरी, अब मत घबराओ नहीं देरी ।
जब प्रभु पृथ्वी पर आते हैं तब अहंकार को खाते हैं ॥
ऐ अभिमानी, ऐ अहंकारी, जल्दी प्रभु का पहचान करो ।
ये तन-मन-धन सब उसका है, उसका उसको तू प्रदान करों ॥
उसका उसको करके तू जल्दी अपना कल्याण करो ।
सदानन्द वाली शरीर को परमप्रभु अपनाये हैं ॥
सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द से, सत्य ज्ञान विखराये हैं ।
जिज्ञासु व श्रध्दालु भक्त को, तत्त्वज्ञान बतलाते हैं ॥
अहंकारी व अभिमानी के, अहंकार को खाते हैं ।
सन्त सदानन्द ललकारत है ।, सब अपनी राह सिधारत हैं ॥
कोई भोगी को कोई योगी को, कोई ॐ और सोऽहँ बतावत हैं ।
कोई भोगी है कोई योगी है पर ज्ञानी कभी कहावत हैं ॥
कोई आत्मा में, कोई आनन्द में, परमात्मा को मिलावत हैं ।
ऐ बन्दों सावधान हो तू; ये सभी तूझे फँसावत है ॥
सदानन्द की एक बात मान, हासिल कर लो तू तत्त्वज्ञान ।
तेरा होवे इससे कल्याण, तब कोई तुझे न फँसा पइहैं ॥
तब अभिमानी होवें या अहंकारी, सब तेरे पास मुंह की खइहें ।
विष्णु जी और राम, कृष्ण ने तत्त्वज्ञान बतलाया था ॥
गरुड. और हनुमान अर्जुन ने तत्त्वज्ञान ही पाया था ।
तत्त्वज्ञान की ताकत से ही सबने धूम मचाया था ॥
, सोऽहँ तत्त्वज्ञान नहीं, झूठे योगी भरमाते हैं ।
आत्मा कभी भगवान् नहीं, झूठे ये सभी फँसाते हैं ॥
वेद, पुराण, गीता, रामायण यही सभी तो कहते हैं ।
तत्त्वज्ञान तो समय-समय पर, भू-मण्डल पर आता है ॥
अपनी प्रक्रियाओं से हरदम, प्रभु का पहचान कराता है ।

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पुरुषोत्तम धाम आश्रम
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